भस्त्रिका यह एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘ धौकनी ‘ होता हैं। जिस प्रकार एक लोहार धौकनी की सहायता से तेज हवा छोडकर उष्णता निर्माण कर लोहे को गर्म कर उस मे की अशुद्धता को दूर करता है, उसी प्रकार भस्त्रिका प्राणायाम में हमारे शरीर और मन की अशुद्धता को दूर करने के लिए धौकनी की तरह वेग पूर्वक अशुद्ध वायु को बाहर निकाला जाता है और शुद्ध प्राणवायु को अंदर लिया जाता हैं। इसीलिए इसे अंग्रेजी में ‘ Bellow’s Breath ‘ भी कहा जाता हैं।
आज के प्रदुषण और धुल से भरे वातावरण में शरीर की शुद्धि और फेफड़ो की कार्यक्षमता बढाने के लिए यह एक उपयोगी प्राणायाम हैं। भस्त्रिका प्राणायाम संबंधी अधिक जानकारी निचे दी गयी हैं :
विधि / Procedure
- सबसे पहले एक स्वच्छ और समतल जगह पर दरी / चटाई बिछाकर बैठ जाए।
- पद्मासन या सुखासन में बैठे। मेरुदंड, पीठ, गला तथा सिर को सीधा रखे और अपने शरीर को बिलकुल स्थिर रखे।
- मुंह बंद रखे।
- इसके बाद दोनों नासिका छिद्रों (Nostrils) से आवाज करते हुए श्वास लेना है और आवाज करते हुए श्वास बाहर छोड़ना हैं।
- श्वास लेने और छोड़ने की गति तीव्र होना चाहिए।
- श्वास लेते समय पेट बाहर फुलाना है और श्वास छोड़ते समय पेट अन्दर खींचना हैं।
- यह प्रक्रिया करते समय केवल पेट हिलना चाहिए और छाती स्थिर रहना चाहिए।
- इस तरह कम से कम 20 बार करना हैं।
- भस्त्रिका प्राणायाम करते समय आंखरी क्रिया / श्वास में श्वास अन्दर लेते समय छाती, पेट और फेफड़ो का पूर्ण विस्तार करे और श्वास को अन्दर रखे। जालंधर और मूल बंध लगाकर यथाशक्ति श्वास रोककर रखे (कुंभक)।
- अंत में बंधो को खोल कर सिर को ऊपर उठाकर श्वास को छोड़ देना हैं।
- भस्त्रिका प्राणायाम करते समय श्वास लेने और छोड़ने का समय समान रखे।
लाभ / Benefits
- इस प्राणायाम से शरीर को प्राणवायु अधिक मात्रा में मिलती है जिसके कारण यह शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है।
- भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम तेजी से काम करता है, जिससे पेट के अंग मजबूत होकर सुचारु रूप से कार्य करते हैं और हमारी पाचन शक्ति भी बढ़ती है।
- मस्तिष्क से संबंधित सभी विकारों को मिटाने के लिए भी यह लाभदायक है।
- आँख, कान और नाक के स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी यह प्राणायाम लाभदाय है।
- तेज गति से श्वास लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं जो फेफड़ों की कार्य क्षमता को बढ़ाता है और हृदय में रक्त नलिकाओं को भी शुद्ध व मजबूत बनाए रखता है।
- वात, पित्त और कफ के दोष दूर होते हैं तथा पाचन संस्थान, लीवर और किडनी की अच्छे से एक्सरसाइज हो जाती है।
- शरीर के सभी अंगो को रक्त संचार में सुधार होता हैं।
- अस्थमा / दमा, टीबी और श्वासों के रोग के रोगियो में लाभ मिलाता है।
- फेफड़ो की कार्यक्षमता बढती हैं।
- शरीर में प्राणवायु (Oxygen) की मात्रा संतुलित रहती हैं।
- पेट का उपयोग अधिक होने से पेट के अंग मजबूत होते है और पाचन शक्ति में वृध्दि होती हैं।
- मोटापा कम करने और पेट की चर्बी कम करने में सहायक हैं।
- शरीर, मन और प्राण को स्फूर्ति मिलती हैं।
सावधानिया / Precautions
- उच्च रक्तचाप के रोगी
- हर्निया के रोगी
- ह्रदय रोग के रोगी
- दमा
- टीबी,
- स्ट्रोक से ग्रस्त व्यक्ति
- गर्भवती महिलाए
- अल्सर के रोगी
- मिरगी के रोगी
- पथरी के रोगी
- मस्तिष्क आघात / Stroke के रोगी
- नाक बंद हो या साइनस की समस्या हो या फिर नाक की हड्डी बढ़ी हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह प्रणायाम करना या नहीं करना चाहिए
- फेफड़ें, गला, हृदय या पेट में किसी भी प्रकार की समस्या हो, अभ्यास करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, ज्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो प्राणायाम करना रोककर आराम पूर्ण स्थिति में लेट जाएँ।
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